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शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
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ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥ १५ ॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे ।
श्री अन्नपूर्णा अष्टोत्तरशत नाम्स्तोत्रम्
श्री दुर्गा अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम्
देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति पंचमोऽध्यायः
सरसों के तेल का दीपक है तो बाईं ओर रखें. पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठें.
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
श्री प्रत्यंगिर अष्टोत्तर शत नामावलि
मनचाहा फल पाने के लिए ये पाठ कर रहे हैं तो ब्रह्मचर्य का पालन करें. देवी click here की पूजा में पवित्रता बहुत मायने रखती है.
देवी माहात्म्यं दुर्गा द्वात्रिंशन्नामावलि
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षम् ।